त्रेतायुग में जन्में प्रभु श्री राम की जीवन से जुड़ी अनेक कथाएं रामायण से मिलती हैं। रामायण की रचना दो रूपों में हुई हैं। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना की गई हैं। और उनके बाद तुलसीदास जी ने रामायण की रचना की जिसका नाम रामचरित मानस हैं।
वाल्मीकि की रचना संस्कृत और श्लोकों के द्वारा की गई हैं। जबकि तुलसी दास जी की रचना अवधि भाषा में की गई हैं। तुलसी के विषय में यह भी कथाओं द्वारा जानने को मिला है।
दोनों ही रामायण में लंका काण्ड और उसके भवन विवरण से जुड़ी चौपाइयां मिलेगी। पर क्या आप यह जानते है की वास्तव में सोने की सुंदर लंका रावण की नहीं अपितु भोलेनाथ शिव की थी। जिसके विषय में हम आपको विस्तार से बताते हैं।
एक बार मां पार्वती और भोलेनाथ हिमालय पर्वत पर बैठे हुए थे। तभी मां पार्वती जी ने भोलेनाथ से कहा की प्रभु क्या आपको नही लगता हमारा भी एक घर होना चाहिए। मैं पहाड़ों पर रह कर ऊब चुकी हूं चलिए कही और चलते हैं।
भगवान शिव मां पार्वती को बात को टाल न सके और सोने की लंका बनवाई। अब भवन बनने के बाद एक ज्ञानी पंडित की आवश्यकता हुई जो गृह प्रवेश करवाए। भगवान शिव के मन में सबसे पहला नाम रावण का आया जो महा ज्ञानी और महा पराक्रमी था। विधि विधान के साथ रावण ने पूजा का कार्य संपन्न करवाया।
पूजन के बाद भगवान शिव ने रावण से कहा अब आप दक्षिणा मांगे। रावण ने कहा प्रभु आप तो वैरागी है, पहाड़ों में रहते है आपको लंका जैसी नगरी की क्या आवश्यकता है आप यह लंका मुझे दे दे। इस तरह दक्षिणा में रावण ने पूरी नगरी ही मांग ली। भगवान शिव ने जब हनुमान रूप में जन्म लिया तब वही अकेले ऐसे थे जो लंका को क्षति पहुंचा सकते थे।