सुहागन स्त्रियों द्वारा मनाए जाने इस पर्व करवाचौथ का प्रचलन बहुत अधिक हैं। देश के हर हिस्से में मनाए जाने इस पर्व में सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र दिन भर निर्जला व्रत करती हैं और रात में चांद को देखकर व्रत खोलती हैं।
करवाचौथ का व्रत हर साल कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता हैं। यह एक निर्जला व्रत होता हैं। इस व्रत में चंद्र देव के दर्शन के बाद ही व्रत तोड़ने का विधान हैं। चन्नी से चांद को देखने के बाद स्त्री अपने पति को देखती हैं फिर पति के हाथों पानी पी कर व्रत खोलती हैं। यह पति पत्नी के दाम्पत्य जीवन को मजबूत करने का एक बेहद खूबसूरत पर्व है।
करवा चौथ की पूजन सामग्री में मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, पानी का लोटा, गंगाजल, दीपक, रूई, अगरबत्ती, चंदन, कुमकुम, रोली, अक्षत, फूल, कच्चा दूध, दही, देसी घी, शहद, चीनी, हल्दी, चावल, मिठाई, चीनी का बूरा, मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और दान में धन।
देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के तट पर रहती थी। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए। तभी एक मगरमच्छ ने करवा के पति पर हमला कर दिया और पैर पकड़ कर उन्हे खींचने लगा। ऐसी स्थिति में करवा के पति जोर जोर से करवा को पुकारने लगे जब करवा वहा आई तो अपने पति को मौत के मुंह में देख घबरा गई। उसने तुरंत एक कच्चे धागे की मदद से मगर को एक पेड़ से बांध दिया और यमराज को पुकारने लगी।
यमराज तभी प्रकट हुए और बोला देवी आपके पति की उम्र पूरी हो चुकी हैं जबकि मगर की उम्र बाकी है मैं उसे नहीं मार सकता। यमराज की ये बात सुनकर करवा गुस्से में आ गई aaur उसे श्राप देने के लिए बोलने लगी ऐसे में स्त्रीत्व के श्राप से बचने के लिए यमराज में मगर को मृत्यु लोक भेज दिया और करवा के पति के प्राण लौटा दिए।
इस प्रकार अपने स्त्रीत्व के दम पर देवी करवा ने अपने सुहाग की रक्षा की। तब से करवा की यह कथा प्रचलित हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है , सती ने भी अपने पति के प्राण वापस लाने के लिए कच्चे धागे से पति को बांध दिया था और अपने स्त्रीत्व के दम पर यमराज से पति के प्राण वापस लाई।
कई जानकारों का ऐसा भी मानना है मां पार्वती ने भी भगवान भोलेनाथ के लिए करवाचौथ का व्रत किया था। मां पार्वती ने वन में कठोर तपस्या की और अन्न , जल का पूर्णतः त्याग कर दिया।
महाभारत में भी करवाचौथ व्रत से जुड़ी कथाएं मिलती हैं। महाभारत के युद्ध काल में स्त्रीयों ने अपने सुहाग की रक्षा हेतु करवाचौथ व्रत का विधि पूर्वक पालन किया था।
कई जगह ऐसा पढ़ने में भी आया है की जब दानवों के जब स्वर्ग पर हमला किया था तो देवताओं के प्राण के रक्षा हेतु देवियों ने करवाचौथ व्रत को किया था।
करवाचौथ व्रत , चंद्र देव के दर्शन के बाद ही पूर्ण होता हैं। सभी सुहागन स्त्रियां जल चढ़ाकर चंद्र देव को चन्नी से देखती हैं। ऐसे में आपको एक मंत्र का जाप करना है जो चंद्र देव के लिए हैं,
सौम्यरूप महाभाग मंत्रराज द्विजोत्तम, मम पूर्वकृतं पापं औषधीश क्षमस्व मे।
इस मंत्र का अर्थ यह होता है कि मन को शीतलता प्रदान करने वाले , ब्राह्मणों में श्रेष्ठ सौम्य स्वभाव वाले, सभी मंत्रो और औषधियों के स्वामी मेरे द्वारा पूर्व में हुए पापों को क्षमा करें और मेरे परिवार में सुख शांति स्थापित करने की कृपा करें।
इस मंत्र को कम से कम ३ बार जपे।
जैसा की आप जानते है करवाचौथ पारंपरिक रूप से मनाए जाने वाला पर्व हैं। ऐसे में आपका पहनावा ऐसा होना चाहिए जो हिंदुस्तानी संस्कृति और सभ्यता की तर्ज पर हो।
आज कल फैशन जगत डिजाइनर द्वारा ऐसे परिधान बनाए जा रहे है जो आपको आधुनिक और भारतीय दोनो का मिश्रण मिल रहा है। हमारे बॉलीवुड अभिनेत्रीयों द्वारा कई ऐसे इंडोवेस्टर्न पहनावे पहने गए हैं , जिन्हे आप करवाचौथ पर पहन सकती हैं। इसमें आपको क्रॉप टॉप , गाउन, लंहगा, इंडो वेस्टर्न साड़ी, पल्लाजो सूट्स, आदि भी शामिल हैं।
करवाचौथ का व्रत हर साल कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता हैं। यह एक निर्जला व्रत होता हैं। इस व्रत में चंद्र देव के दर्शन के बाद ही व्रत तोड़ने का विधान हैं।