हमारे देश के प्रत्येक भगवान के पूजन का महत्व बताया गया हैं। ३३करोड़ देवी देवताओं में से यदि किसी के पूजन को प्रथम स्थान दिया गया हैं तो वह है भगवान गणेश।
भगवान गणेश माता पार्वती और महादेव शिव के पुत्र है। यह भगवान कार्तिकेय के भाई है। हाथी के मुख वाले भगवान गणेश के जीवन से जुड़ी अनेक कथाएं है जो बेहद रोचक है। इन्हे जन्म से ही मोदक मिष्ठान अति प्रिय है। शरीर से बचपन से स्वस्थ्य भगवान गणेश के लंबे उदर अर्थात पेट के नाते इन्हे लंबोदर भी कहते हैं। रिद्धि सिद्धि ब्रह्मा जी को मानस पुत्रियां थीं।
भगवान गणेश की पत्नी का नाम रिद्धि सिद्धि है। रिद्धि और सिद्धी से दो पुत्र थे क्षेम और लाभ। भगवान गणेश की पुत्री का संतोषी नाम था। भगवान गणेश को बुद्धिजीवियों के भगवान माना गया हैं। किसी भी उद्यम की शुरुआत में , पूजन में, धर्म कार्य में भगवान गणेश की पूजन का प्रथम विधान है।
एक बार मां पार्वती के साथ , महादेव बैठे हुए थे, तभी देखा गया देवी देवताओं में आपस में लड़ाई हो रही थी की सबसे पहले किसकी पूजा होनी चाहिए, सभी भगवान स्वयं को श्रेष्ठ कहने की होड़ में लग गए।
ऐसे में भोलेनाथ ने एक युक्ति निकाली और सभी देवी देवताओं से कहा जो सबसे पहले पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगा कर वापस आ जायेगा उसी की पूजा सबसे पहले को जायेगी। सभी देवी देवता रेस में लग गए पर भगवान गणेश में अपने माता पिता का ही चक्कर लगाया और रुक गए, पूछने पर गणेश भगवान ने बताया माता पिता ही मेरे लिए पूरे ब्रह्माण्ड के बराबर है।
यह बात सुन सभी गणेश भगवान से सभी प्रसन्न हुए और महादेव ने उन्हे आशीर्वाद की अब से जब भी पूजा होंगी उसकी शुरुआत भगवान गणेश के नाम से होगी।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश का सबसे बड़ा त्योहार हैं। यह दस दिन का उत्सव होता हैं जिसे बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता हैं। ऐसा माना जाता है को महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत की रचना हेतु गणेश भगवान जी का मंत्र जप शुरू किया इसके पश्चात गणेश जी पधारे। यह दिन चतुर्थी का था। भगवान गणेश ने प्रकट होकर महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना मात्र दस दिन में कर दी। इन्ही दिनों को उत्सव के रूप में मनाते हैं।
जानकारों के अनुसार भगवान गणेश के 108 नाम है। जिनमे से कुछ नाम इस प्रकार है।
एकदन्त, कपिल ,गजकर्ण, लम्बोदर, विकट ,विनायक ,गजानन, बुद्धिनाथ ,भालचंद्र, एकाक्षर ,गजकर्ण, आदि।
भगवान गणेश को चतुर्थी के अवसर पर घर ले मंत्रो से अभिमंत्रित कर पूजन करें। धूप दीप जलाएं , गुड़हल का पुष्प चढ़ा कर जनेऊ, दूरबा, सिंदूर , मोदक आदि समर्पित करे। इसके बाद भगवान गणेश की आरती गाए, निराहार रहकर फलहार ले और भगवान गणेश का व्रत पूर्ण करे।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी। माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अन्धे को आँख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
भगवान गणेश को बुद्धिजीवियों के भगवान माना गया हैं। किसी भी उद्यम की शुरुआत में , पूजन में, धर्म कार्य में भगवान गणेश की पूजन का प्रथम विधान है।