संकट कटे मिटे सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।
जिनके स्मरण मात्र से ही सभी संकट काट जाते है ऐसे श्री हनुमान जी को मेरा प्रणाम हैं। आइए जानते है श्री हनुमान जी के जन्म से लेकर बड़े होने तक की अनेक लीलाएं कहानियां व उनका श्री राम के प्रति भाव।
बजरंग बली हनुमान जी को भगवान शिव का एकादश रुद्र अवतार माना जाता हैं । इनका जन्म अश्विन माह में चतुर्दशी को हुआ था। जबकि कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हनुमान जी का जन्म चैत्र का शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को माना गया हैं। इस दिवस को हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता हैं।
हनुमान जी के जन्मस्थान को लेकर अनेक मत है पर यह बात सिद्ध है की माता अंजनी ने हनुमान जी को आंजन पर्वत की गुफा में जन्म दिया था।
हनुमान जी को शक्ति ,भक्ति , बुद्धि का भगवान कहा जाता हैं यह शिव के सबसे प्रतापी अवतार हैं। इनके जन्म सी जुड़ी एक प्रमुख कथा हैं जिसका उल्लेख इस प्रकार हैं :
हनुमान जी की माता का नाम अंजनी था। पूर्व जन्म में माता अंजनी इंद्र के राज महल में अप्सरा थी। उस जन्म में अंजनी माता का नाम पुंजिकस्थला था।माता अंजनी बहुत सी सुंदर और अद्भुत प्रतिभाशाली थीं। एक बार माता अंजनी ने चंचलता वश एक तपस्या में रत ऋषि के साथ दुर्वयव्हार कर दिया जिसके फलस्वरूप ऋषि मुनि ने माता अंजनी को श्राप दे दिया की जिस रूप पर इतरा कर तुमने यह किया वह रूप बानर का बन जाएं।
यह सुनते की माता अंजनी ऋषि से माफी मांगने लगी बहुत विनती पर ऋषि का हृदय पिघला पर वह बोले मैं श्राप तो वापस नहीं ले सकता हूं परंतु यह वरदान देता हु की तुम्हे अतिबलशाली ज्ञानवान तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी और उसके जन्म के बाद ही तुम्हे इस बानर रूपी श्राप से मुक्ति मिलेगी।
माता अंजनी ने अपने श्राप से जुड़ी सारी कहानी विस्तार से इंद्र देव को बताई साथ ही यह भी बताया कि वो जिससे प्रेम करेंगी वह भी बानर रूप में ही होगा। यह सुन कर इंद्र देव ने माता अंजनी को धरती पर रहने को कहा साथ ही यह वरदान दिया की तुम्हे स्वयं महादेव शिव पुत्र रूप में मिलेंगे और तुम श्राप मुक्त हो जाओगी।
एक दिन माता अंजनी की मुलाकात वन में केसरीनंद्न से हुई। माता उनके रूप को देखते ही मोहित हो गई, केसरीनंदन जब उनके समीप आए माता ने अपना चेहरा छुपा लिया की उनके वानर रूप का पता न चले पर देखते ही देखते केसरीनंद भी वानर रूप में हो गए उन्होंने बताया की आप मुझसे न सरमाएं मैं स्वयं वानर राज केसरी नंदन हूं। मैं मावन और वानर दोनो का रूप धारण कर सकता हूं। इसके पश्चात अंजनी माता ने केसरीनंदन के साथ विवाह कर लिया।
विवाह को बहुत समय हो जाने के उपरांत भी माता अंजनी को संतान सुख न मिला। अतः वो निराश हो मातंग ऋषि के पास पहुंची, ऋषि ने अंजनी माता को नारायण पर्वत पर स्थित स्वामी तीर्थ जा कर 12 वर्ष तपस्या और उपवास करने को कहा। तब वायुदेव ने प्रसन्न हो पुत्र का वरदान दिया।
माता पुनः महल को लौट आई और महादेव की भक्ति में लीन हो गई माता ने महादेव को प्रसन्न किया और कहा प्रभु मेरे गर्भ में पुत्र रूप में आप जन्म ले तभी मैं ऋषि के श्राप से मुक्त हो पाऊंगी और भोलेनाथ माता के वातसल्य का सुख प्राप्ति हेतु हनुमान रूप में प्रकट हुए ।
पौराणिक कथाओं के आधार पर हनुमान जन्म के कई प्रयोजन माने गए है राजा बाली का वध , रावण वध , सुरसा वध , माता अंजनी को श्राप से मुक्त करवाना पर जो सबसे बड़ा उद्देश्य था वो श्री राम के चरणों में भक्ति करना दुनिया में प्रभु और भक्त के अनूठे रिश्ते को दर्शाना।
बजरंबली, रामभक्त, आञ्जनेय, अतुल्य, वायुपुत्र, महाबली , रामेष्ठ, पिंगाच्छ, अमित विक्रम, उदधिक्रमण, शोक विनाशक, लक्ष्मण प्राण दाता, दसग्रीव दर्पहा इत्यादि नाम है । इनके स्मरण मात्र से ही आपके सब दुख दूर हो जाएंगे।
हनुमान जी की गदा के नाम को लेकर संशय है । परंतु हनुमान के परम भक्त तुलसी जी के अनुसार समझे तो उनकी गदा का नाम ब्रज था हालाकि इसकी कही पुष्टि स्वयं तुसली दास जी ने भी न की है पर चौपाई के माध्यम से कहा है
हाथ ब्रज और गदा विराजे
कांधे मूंज जनेऊ साजे।
वही तुलसी दास ने बजरंग बाण में भीं लिखा है
गदा ब्रज ले बैरहि मारो महराज प्रभु दास उबारो ।
यहां भी हनुमान जी की गदा का नाम ब्रज बताया हैं।
A हनुमान जी बचपन से अतिबालिशाली से वायुपूत्र होने के नाते जन्म से ही इनमें वायुदेव समान उड़ने का गुण मौजूद था।
B बचपन में ही भगवान सूर्य देव को आसमान का फल समझकर निगल गए थें।
C शनिदेव के क्रोध व अंहकार को कम करने के लिए हनुमान जी ने उन्हे अपनी पूछ से बाध दिया था।
D चंद्र देव पर राहु ग्रहण डालने वाला था इस हेतु राहु को युद्ध में परास्त किया।
E सुग्रीव को उसकी राजगद्दी व पत्नी पुनः दिलवाई।
F लक्ष्मण के लिए संजीवीनी बूटी ले आ कर उनकी जान बचाई।
G माता सीता व प्रभु श्री राम का मिलन कराया।
तुसलीदास को, प्रभु श्री राम के दर्शन हनुमान जी की ही कृपा से हुआ था। जग जग में श्री राम की भक्ति को पहुंचाने वाले तुसली दास जी ही हैं। हनुमान जी ने तुलसी दास से कहा आप चित्रकूट के घाट पर जाए वही आपको श्री राम के दर्शन होंगे और जब श्री राम चित्रकूट आए उन्हें श्री राम कृपा का उनके दर्शन का सौभाग्य मिला।
चित्रकूट के घाट पर हुई संतन की भीड़ ।
तुसली दास चंदन घिसे तिलक देत रघुवीर।
महाभारत काल में सभी पांडव अज्ञात वास हेतु गंध मादन पर्वत पर गए हुए थे। भीम को अपनी शक्ति पर भूत अंहकार था उनके इस अंहकार को तोड़ने के लिए हनुमान जी में बूढ़े कपि का रूप धारण किया भीम ने जब उनके पेड़ के नीचे से हटने को कहा वो नही माने और कहा आप खुद ही मेरी पूंछ हटा दे जब भीम ने हनुमान जी की पूंछ हटाने की कोशिश की तो हिला भी न पाए। तब भीम के अंहकार को तोड़ते हुए हनुमान जी ने दर्शन दिए।
हनुमान जी श्री राम के भक्त है । उन्हें अपनी उपासना से अधिक प्रसन्नता तब होती है जब श्री राम के गुणगान किए जाते हैं इसलिए हनुमान को प्रसन्न करने के लिए श्री राम की भक्ति करें।
मंगलवार को मंदिर जाके हनुमान जी को सिंदूर लगाए।
हनुमान चालीसा का पाठ करे।
सुंदरकांड में हनुमान महिमा का विस्तार से वर्णन है इसके पाठ से भी हनुमान कृपा मिलती हैं।
बजरंग बाण का पाठ करे उनकी कृपा होगी।
इस सिद्धी के द्वारा हनुमान जी बहुत छोटा आकार कर सकते है । सीता माता की खोज के समय हनुमान जी ने यही रूप ले समुद्र पार किया था।
इस सिद्धी के अनुसार हनुमान जी विशाल रूप ले सकते हैं । सुरसा वध के समय हनुमान जी ने यह आकार लिया था।
इस सिद्धी से हनुमान जी अपने भार को अधिक कर सकते हैं भीम का घमड़ तोड़ने के लिए यह रूप लिया था।
इस सिद्धी से हनुमान जी रूई के समान हल्के हो कही भी आ जा सकते है सीता मां की खोज में यहीं रूप ले हनुमान जी पत्तियों में छिप गए थे।
हनुमान जी इस सिद्धी के द्वारा हर एक वस्तु की प्राप्ती कर सकते है । भविष्य वर्तमान सभी पर नियंत्रण कर सकतें है। हर पंछी पशु से बात कर सकते थे सीता मां की खोज के समय बहुत से पंछियों से बात की थीं।
इस सिद्धी से हनुमान जी पाताल लोक की गहराईयों में जा सकते है। समुद्र में जा कर मकर ध्वज से लड़ के श्री राम भगवान और लक्ष्मण जी को वापस ले आए थे।
इस सिद्धी से हनुमान जी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई थी । जिसके कारण उन्होंने वानरों पर नियंत्रण रखा।
इस सिद्धी से मन पर नियंत्रण किया जा सकता हैं।
इस विषय को लेकर अनेक भ्रणात्रिया है परन्तु कुछ विद्वानों का मानना है की हनुमान जी गंध मादन पर्वत पर आज भी सशरीर मौजूद हैं ।